डी. डी. ए. भूमि
अतिक्रमण करना दंडनीय अपराध है
यह बोर्ड लगा है जंगपुरा में उस स्थान पर जहाँ अतिक्रमण करके एक अवैध मस्जिद बना दी गई थी. अदालत ने निर्णय दिया कि यह जमीन डीडीए की है. अदालत ने डीडीए को आदेश दिया, मस्जिद को गिरा दो, अपनी जमीन वापस लो. डीडीए ने मस्जिद गिरा दी. अतिक्रमणकर्ता हिंसक हो उठे, कारों और बसों को नुकसान पहुँचाया. दिल्ली की मुख्य मंत्री और शाही ईमाम दंगाइयों के साथ खड़े हो गए. मुख्य मंत्री ने वचन दिया, मैं मस्जिद बनबाउंगी. मस्जिद नहीं थी पर फिर भी वहां नमाज पढने की इजाजत दी गई. जंगपुरा आरडब्लूए ने अदालत की मानहानि का मुकदमा दायर किया. अदालत अब तक नर्म पड़ चुकी थी. अदालत को इस में कोई अवमानना नजर नहीं आई. दो महीने तक डीडीए की जमीन पर १० अतिक्रमण करने वालों को नमाज पढ़ने की इजाजत दे दी गई. अदालत ने कहा इस समय में मामला निपटा लो.
हमारी कुछ समझ में नहीं आया. जमीन डीडीए की है. जमीन पर अतिक्रमण हुआ है, जो एक दंडनीय अपराध है, अदालत के आदेश पर अतिक्रमण हटा दिया गया था, अदालत ने डीडीए को आदेश दिया था, अपनी जमीन अपने अधिकार में लो, जमीन के चारों तरफ दीवार बनाओ. डीडीए ने अदालत के आदेश का पालन किया. अब नमाज पढ़ने की इजाजत किस लिए? अब कौन सा मामला रह गया है जो निपटाया जाएगा? किसी को कोई दंड नहीं दिया गया. मुख्य मंत्री और ईमाम ने जो किया उसे अदालत की अवमानना ही नहीं माना गया. कारों और बसों को जो नुकसान पहुँचाया गया उसकी भरपाई किसी से नहीं करवाई गई.
यह कैसा कानून है? यह कैसा निर्णय है? क्या मुख्य मंत्री और ईमाम पर देश का कानून लागू नहीं होता? क्या एक धर्म विशेष के लोगों पर देश का कानून लागू नहीं होता? अगर डीडीए की जमीन पर अतिक्रमण करके एक मंदिर बना दिया जाता, हिन्दू धर्म के नाम पर तोड़-फोड़ की जाती, तब भी अदालत का निर्णय यही होता या कोई और?